जीवन पथ है ऊबड़ खाबड़ , पर राहगीर तू चलता चल
डर कर मग की बाधाओं से ,मत करना अपने नयन सजल
इन राहों में विष का प्याला भी,
तुझको पीना पड़ जाये
तो मान यही तू महाकाल बनकर , जगहित में पिये गरल
बस हँसकर साथी पी लेना , तू इसे समझकर गंगाजल
वैसे तो चाह यही सबकी, कुछ स्वप्न सजें कोमल कोमल
लेकिन भूचाल हिला देता, सपनों में कल्पित सभी महल
कड़वे यथार्थ का काँटा तेरे, पैरों में जो गड़ जाये तो
समझ कोई कड़वी सच्चाई , पग चुम्बन को हुई विकल
जीवन का कड़वा घूँट यही, तेरे हिस्से का गंगाजल
दो दिन से ज्यादा नहीं टिकेंगे , रास रंग के झूठे
पल
दुख ही मनुष्य की सही परीक्षा,
किसमें कितना धैर्य अटल
इस रंगभूमि में दुख का कोई, लम्हा जीना पड़
जाये
तो समझ तराजू पर तोले , तुझको विपन्नता का ये पल
तेरा पलड़ा भारी करता है, आज कण्ठ में गंगाजल
है शूरवीर खग कौन ? दिखे, जब हो जंगल में उथल पुथल
जो नीड़ बचाये लड़ लड़ के , झन्झावातों को करे विफल
जब जब अभिमानी अम्बर से अंगार गिरे, पतझड़ आये
तो मान डराने को तुझको ,बहुरुपिये आते भेष बदल
थक हार कहें जो ,तूने भी क्या खूब पिया है गंगाजल
बहुत सुन्दर गीत है.
जवाब देंहटाएंऔर ब्लॉग का कवर पिक्चर भी सुन्दर लगा.
उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद दीदी
हटाएं... आप लोगों का मार्गदर्शन ऐसे ही मिलता रहा तो और बेहतर रचनायें आयेंगी
सत्य! वीर-रस में लिखी गयी बहुत ही प्रेरक रचना, अति सुन्दर!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मधुरेश जी
हटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं सशक्त अभिव्यक्ति....
अनु
धन्यवाद अनु जी
जवाब देंहटाएंदो दिन से ज्यादा नहीं टिकेंगे , रास रंग के झूठे पल
जवाब देंहटाएंदुख ही मनुष्य की सही परीक्षा, किसमें कितना धैर्य अटल
....बिलकुल सच...बहुत सशक्त और प्रेरक रचना...
thank you sir
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