जब नयनों में तुम ही तुम थे, वो उन्मादी क्षण पुनः जिला दे
उसी बावरेपन की हाला का , मुझको दो घूँट पिला दे
जब आती जाती मस्त हवा से, हाल तेरा हम सुनते थे
जब तुम्हें याद कर करके हम ,सपने कुछ मन में बुनते थे
जब सो जाता था हर कोई ,हम रात में तारे गिनते थे
अब उसी तरह से रातों में, फिर से तारे गिनना सिखला दे
उसी बावरेपन की हाला का , मुझको दो घूँट पिला दे
इक दूजे को पाने के लिये, सर्वस्व मिटाया था हमने
इक दूजे का प्रेमी बनकर ,जब नाम कमाया था हमने
है प्रेम जगत का अन्तिम सच, सबको बतलाया था हमने
आ दुसह विरह के इस क्षण में, तू आज प्रणय का रंग मिला दे
उसी बावरेपन की हाला का , मुझको दो घूँट पिला दे
ये प्रेमी का सौभाग्य है कि, वो पड़ा प्रेम के फेरे में
पंछी ढूँढ़े है तेरी आहट, फिर से नीड़ बसेरे में
तस्वीर ना गुम होने पाये ,इस फैले हुए अंधेरे में
जो करे तिमिर को छिन्न-भिन्न ,वो प्रेम पूर्णिमा आज बुला दे
उसी बावरेपन की हाला का , मुझको दो घूँट पिला दे