हैं कई मेहमां नये , मेरी तरफ़
मत देख साकी
मैकदे से अब हमें ,दो घूँट मिलना ही
बहुत है
वक्त को शायद उदासी ,इस कदर
कुछ भा गयी है
बस बदलियाँ घिर रही हैं,रात काली
आ गयी है
चाँदनी की चादरों का, ज़िक्र करके क्या
मिलेगा ?
छिप गया है चाँद अब ,जुगनू का जलना ही
बहुत है
क्या लुटायेगा जुए में ,जब हैं तेरे हाथ खाली
अब मरण के पर्व में ,क्यों याद आती है दिवाली
मरघटों में क्या करें ,बातें विकल्पों
की, समझ लो
दीपमाला की जगह ,अर्थी का जलना ही
बहुत है
एक पल उल्लास का है ,अनगिनत अवसाद के क्षण
पापहन्ता राम विस्मित , जब दिखे हर
ओर रावण
पुण्य पातक पर बहस ,अब छोड़ भी
दो,कल करेंगे
इस दशहरे में किसी पुतले का जलना ही
बहुत है
यह नहीं मधुमास ,पतझड़ का दिवस अब आ
चुका है
छोड़कर निस्प्राण उपवन ,जबकि मधुकर जा
चुका है
रंग खुश्बू की कहानी ,लग रही है बेसबब अब
डालियों पर इक बनैला , फूल खिलना
ही बहुत है
हैं कई मेहमां नये , मेरी तरफ़
मत देख साकी
मैकदे से अब हमें ,दो घूँट मिलना ही
बहुत है
एक पल उल्लास का है ,अनगिनत अवसाद के क्षण
जवाब देंहटाएंपापहन्ता राम विस्मित , जब दिखे हर ओर रावण
पुण्य पातक पर बहस ,अब छोड़ भी दो,कल करेंगे
इस दशहरे में किसी पुतले का जलना ही बहुत है
प्रिय अंजनी जी बहुत सुन्दर सन्देश देती ..सुन्दर मूल भाव लिए रचना ...काश ये रावण पुतले के रूप में ही नहीं असल में भी ख़तम हो सकें तो आनंद और आये
आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
निष्प्राण ....शब्द देखें
वाह! ये भी बहुत अच्छी रचना.. बच्चन और दिनकर से बहुत प्रभावित लगते हैं... बहुत शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबच्चन जी और दिनकर जी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं ....उनके सामनें हमारा कद बहुत छोटा है। परन्तु ये बात ज़रूर है कि इन महान हस्तियों की रचनाये पढ़ पढ़ के जीवन के कटु अनुभवों को शब्दों में पिरोने की सीख मिली है
हटाएंउत्साह्वर्धन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद मधुरेश भाई
बहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद