दिखती,छिपती और थिरकती ,लेकर पीर ,जश्न की टोली
रोज रोज मुस्कान खेलती , आँसू के संग आँख मिचौली
ये क्यों करती ऐसा सुन ,यह तुझे जानना
है आवश्यक
सुख दुख दोनो बने रहेंगे, है अस्तित्व जगत का जब तक
मौका मिलने पर दोनो ही , करेंगे तेरे साथ ठिठोली
इसीलिये मुस्कान खेलती , आँसू के संग आँख मिचौली
कभी उजाले आशाओं के ,कभी मिलेंगे घुप्प अँधेरे
जीवन की इस समर भूमि में, योद्धा सुन माथे पर तेरे
कभी चिता कि राख लगेगी, कभी सजेगी कुमकुम रोली
इसीलिये मुस्कान खेलती , आँसू के संग आँख मिचौली
दिखकर छिपकर सीख दे रही, राही तुझे अडिग रहने की
ग़म आते हैं तो आने दे , आदत डाल इन्हें
सहने की
एक भाव से मना सके तू ,विकट मुहर्रम प्यारी होली
इसीलिये मुस्कान खेलती, आँसू के संग आँख मिचौली
अति सबकी ही है दुखदायी, हो कोमलता या
कठोरता
पाँव छिले तो कोस रहा , पथरीले पथ को आज सिसकता
सोच यहीं पर धँस जाता तू , यदि हो जाती मिट्टी पोली
इसीलिये मुस्कान खेलती , आँसू के संग आँख मिचौली
जीवन बने जुआ इकतरफा , तब क्यों खेले दाव जुआड़ी
मज़ा खेल में आये जब हो , निर्णय से अनजान खिलाड़ी
रंग हार का रंग जीत का , मिले बने कोई रंगोली
इसीलिये मुस्कान खेलती , आँसू के संग आँख मिचौली
बहुत खूब आंसू और मुस्कान ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशवन्त जी
जवाब देंहटाएंरंग हार का रंग जीत का , मिले बने कोई रंगोली
जवाब देंहटाएंइसीलिये मुस्कान खेलती , आँसू के संग आँख मिचौली
जीवन की लहर इन्ही ऊबर-खाबड़ पथरीले रस्तों से गुज़रती है.. थोड़ी ख़ुशी, थोडा ग़म!
बहुत खूब अंजनी भाई! शुभकामनाएं