(ये मेरी पहली रचना थी। "उसी मदरसे में हमने दीवानेपन का सबक पढ़ा है " सुनने में थोड़ा अजीब लगता होगा। पर असल में ये दीवानापन पराकाष्ठा है- निष्ठा की , भक्ति की, साधना की, समर्पण की। भक्त जब अपने उपास्य के प्रेम में अपनी सुध बुध बिसरा देता है, तब वो दीवाना कहलाने लगता है। इसी दीवानेपन को तलाशने की कोशिश की है मैने-प्रकृति में, संस्कृति में,भक्ति में। आशा है आपको पसन्द आयेगी।)
मतवाला मौलवी जहाँ पर, अलबेला शागिर्द खड़ा है
उसी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
इन्द्रधनुष की चादर ओढ़े ,जब नभ का मुखड़ा खिल आया
प्रेमी के सम्मुख धरती ने ,घूंघट को तब तनिक उठाया
अनुरागी वसुधा पर जब -जब, हरीतिमा का रंग चढ़ा है
तभी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
अविचल सिन्धु साधना का ,या मतवालेपन का यह निर्झर
कर आया है पार युगों को ,कालिदास की कविता बनकर
लेकर प्रेमी का संदेशा , मेघदूत जब कभी उड़ा है
तभी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
अल्हड़पन, दीवानापन, निष्ठा या भक्ति कहो तुम इसको
साधक जिसे साधना या फिर फक्कड़ कहे फक्कड़ी जिसको
जिस बाजार में मस्त कबीरा,अपना ही घर फूँक खड़ा है
उसी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7bLXtx7MFc-xjogdn8-m-lZAalsjxgMCBrXlU7Abpu-BbAn_sgRrkouEX1Gd5ygFKoGi8YHGBdk7nlUJ7BhKkC5Nt9vzqrxfrI2lFfqj2JK5CRiGHBREJZzbn6l-7HAuhSyEb84bd5Rjs/s400/usi32)
मुझे लगा दीवाना योगी, बैठा था जो भस्म रमाकर
विह्वल हो जो नाची मीरा, श्याम रंग ओढ़नी रंगाकर
श्याम सलोना उसका नटवर, लिये बाँसुरी जहाँ खड़ा है
उसी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg55Erd1hiwrct9ryxvvfIA4BMQK_fpOjmYDwMvb-Tjh64d4EXNROJrf0_c9pt9A3zdZ9OqIyMVIe5wZhtr48G_Di3bZ0sGfYKqGPufuIK_n93rFawgTS6qQGHZ-nH0pVt93iqibEu4evJ9/s400/usi+5)
आत्मार्पण करने जगती में ,जब कोई दीवाना आये
चिर अकाट्य इस प्रेमपाश में, ईश्वर भी सहर्ष बंध जाये
जूठे बेर खिलाकर प्रभु को ,जहाँ प्रेम का मान बढ़ा है
उसी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
दीवाने बलिदानव्रती को ,मोह नही निज जीवन का है
हर्षित होकर जीवन वारूँ, अवसर ना ये क्रन्दन का है
हो जाये बलिदान चन्द्र पर ,जिद पर जहाँ चकोर अड़ा है
उसी मदरसे में हमने , दीवानेपन का सबक पढ़ा है
ज्ञान-भक्ति के इस विवाद में, विजय सदैव भक्ति की होगी
ज्ञान अपूर्ण, भक्ति है पूरी, कहता यही प्रेम का योगी
शुष्क ज्ञान से उद्धव के, गोपी का निश्छल प्रेम लड़ा है
तभी मदरसे में हमने , दीवानेपन का सबक पढ़ा है