मैं ठहरी अदनी सी एक दरिया, तू है समन्दर कहाँ पता था ?
हुए कभी हमकिनार तो तुम , चले हमें दरकिनार करके
हुए कभी हमकिनार तो तुम , चले हमें दरकिनार करके
तू इतना गहरा कि, दिल में क्या है , तेरे मुझे ये कहाँ खबर थी
मैं तेरी जानिब निकल पड़ी थी, तमाम अडचन को पार करके
मिलोगे कैसे ? कि जब हमारी , किस्मत खानाबदोश राहें
मैं तेरी जानिब निकल पड़ी थी, तमाम अडचन को पार करके
मिलोगे कैसे ? कि जब हमारी , किस्मत खानाबदोश राहें
अधूरी हसरत मचल रही है , हमारे दिल में गुबार बनके
नहीं है मुमकिन तेरे लिये भी, तटों की चौखट को लाँघ पाना,
तभी तो उठती है बेकली ये , तुम्हारे सीने में ज्वार बनके
तभी तो उठती है बेकली ये , तुम्हारे सीने में ज्वार बनके
हम सब एक मर्यादा से बंधे हैं।
जवाब देंहटाएंनहीं है मुमकिन तेरे लिये भी, तटों की चौखट को लाँघ पाना,
जवाब देंहटाएंतभी तो उठती है बेकली ये , तुम्हारे सीने में ज्वार बनके
वाह,,,,,बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति ,...अंजनी कुमार जी,....
वर्डवेरीफिकेशन हटा ले कमेंट्स देने परेशानी और समय बर्बाद होता है,....इस ओर ध्यान देगें
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
सीधी सपाट बे-लाग बिंदास भावाभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंनहीं है मुमकिन तेरे लिये भी, तटों की चौखट को लाँघ पाना,
जवाब देंहटाएंतभी तो उठती है बेकली ये , तुम्हारे सीने में ज्वार बनके
प्रिय अंजनी जी बहुत सुन्दर ..हाँ मुश्किल तो हैं राहें लेकिन जहां चाह वहां राह ...खानाबदोश तो और रंगीन दुनिया और पुष्प से मिल लेते हैं
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
सुन्दर अभिव्यक्ति! अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढना. यूँही लिखते रहें!
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ...!!!!!
जवाब देंहटाएंआप की इस रचना को ब्लॉग पत्रिका चिरंतन के "समंदर" पर आधारित अंक में 8/6/12 को लिया जा रहा है. आभार.
जवाब देंहटाएंBlog Link - sachswapna.blogspot.com