उसी मदरसे में हमने - भाग 2
(भक्त जब अपने उपास्य के प्रेम में अपनी सुध बुध बिसरा देता है,
तब वो दीवाना कहलाने लगता है।असल में ये दीवानापन पराकाष्ठा है- निष्ठा की , भक्ति की, साधना की,
समर्पण की।)
धर्म अगर है अलग प्रेम से, तब क्यों करूँ निरर्थक चिन्तन
धर्म विमुख हो जी जाऊं, पर प्रेम विमुख जीवन क्या जीवन
लोकविमुख हो सूर्यमुखी, जब कभी सूर्य की ओर मुड़ा है
तभी मदरसे मे हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
विचलित ना कर सकता ,दुष्कर मार्ग उपासक दीवाने को
उद्यत जो अपने उपास्य पर ,प्राण निछावर कर जाने को
कर प्रदक्षिणा दीपक की ,जिस जगह पतंगा मरा पड़ा है
उसी मदरसे में हमने दीवानेपन का सबक पढ़ा है
दीवाने के नयन तपस्वी ,थके ना कभी प्रतीक्षा करके
प्राप्य अप्राप्य कहां वो समझे ,प्रेम पिपासा में अब पड़के
पाने को जल ,मरुथल में ,जब जब दीवाना मृग दौड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
दीवानापन दिखे है मुझको ,सेनानी के कटे मुण्ड में
मातृभूमि का कर वन्दन ,जो प्राण चढ़ाये हवन कुण्ड में
बलिवेदी पर वीर सुतों का ,जब जब शोणित रक्त चढ़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
उजियारे पखवारे में ज्यों ,चन्दा का आकार है बढ़ता
प्रेम डगर पर कदम दर कदम ,दीवाने का रूप निखरता
जला स्वयं को प्रेम अग्नि में ,जब जब कुन्दन चमक पड़ा है
तभी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है
एक रंग दे रहा दुहाई ,रंगों के इस विपुल झुण्ड में
नीरस उसे लगे जीवन ,पाखण्डी पण्डित के त्रिपुण्ड में
मगर मांग में दीवानी की, बनकर जब सिन्दूर पड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
डूबूं इस रस में कि बन्द हो ,रोज रोज का आना जाना
पाने को पूर्णता प्रेम की , आतुर एक भ्रमर दीवाना
बन्द पंखुड़ी में होने को, जब नलिनी की ओर मुड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सुगठित रचना....
अनु
धन्यवाद अनु जी
हटाएंडूबूं इस रस में कि बन्द हो ,रोज रोज का आना जाना
जवाब देंहटाएंपाने को पूर्णता प्रेम की , आतुर एक भ्रमर दीवाना .... !
(यह प्रेम का पराकाष्ठा है .... !!)
बन्द पंखुड़ी में होने को, जब नलिनी की ओर मुड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
अब यकीं हो गया ,आपने जो पढ़ा है ,सही पढ़ा है .... !
आपकी इस पोस्ट को 07/08/2012 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जायेगा |आपके सुझावों का स्वागत है ....धन्यवाद .... !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद दीदी
जवाब देंहटाएंआपने रचना में छिपे मनोभावों को पहचान लिया....मेरा लिखना सार्थक हो गया
बहुत सुंदर ! प्रेम को दीवाना होकर ही समझा जा सकता है..
जवाब देंहटाएंवाह,,,बहुत बेहतरीन रचना,,,,अंजनी कुमार जी ,,,
जवाब देंहटाएंरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
पढ़ना शुरु किया तो लगातार पढ़ती चली गई...भाग १ तक !
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत लगी आपकी रचना...
बेहतरीन खूबसूरत रचना,,,,अंजनी कुमार जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर प्रभावशाली रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर:-)
विचलित ना कर सकता ,दुष्कर मार्ग उपासक दीवाने को
जवाब देंहटाएंउद्यत जो अपने उपास्य पर ,प्राण निछावर कर जाने को
कर प्रदक्षिणा दीपक की ,जिस जगह पतंगा मरा पड़ा है
उसी मदरसे में हमने दीवानेपन का सबक पढ़ा है
सुंदर शब्दों से अलंकृत हुई काफी सुंदर रचना !
प्रभाव छोड़ती हुई ...
एक रंग दे रहा दुहाई ,रंगों के इस विपुल झुण्ड में
जवाब देंहटाएंनीरस उसे लगे जीवन ,पाखण्डी पण्डित के त्रिपुण्ड में
मगर मांग में दीवानी की, बनकर जब सिन्दूर पड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
बहुत ही बहेतरीन मन को छू लेने वाली रचना है ह्रदय से बधाई इस उत्कृष्ट कृति के लिए
धर्म अगर है अलग प्रेम से, तब क्यों करूँ निरर्थक चिन्तन
जवाब देंहटाएंधर्म विमुख हो जी जाऊं, पर प्रेम विमुख जीवन क्या जीवन
डूबूं इस रस में कि बन्द हो ,रोज रोज का आना जाना
पाने को पूर्णता प्रेम की , आतुर एक भ्रमर दीवाना
चुन चुन लाऊँ किस किस पद को, हर पद देख हुआ मतवाला
सच कहते हैं छप्पर फाड़ के, देता है वो देने वाला
माँ शारद ने अपने हाथों इस जग खातिर तुम्हें गढ़ा है
लिखते रहना, विषय-वस्तु को यह सारा संसार पड़ा है.......
Bahut sundar rachna...
जवाब देंहटाएंउजियारे पखवारे में ज्यों ,चन्दा का आकार है बढ़ता
जवाब देंहटाएंप्रेम डगर पर कदम दर कदम ,दीवाने का रूप निखरता
जला स्वयं को प्रेम अग्नि में ,जब जब कुन्दन चमक पड़ा है
तभी मदरसे में हमने, दीवानेपन का सबक पढ़ा है...waah
अद्भुत रचना, हर छंद में गहरे भाव, बधाई और शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवाह |
जवाब देंहटाएंपहले नहीं देख पाये |
http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/08/blog-post_4.html
कल 07/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
दीवाने के नयन तपस्वी ,थके ना कभी प्रतीक्षा करके
जवाब देंहटाएंप्राप्य अप्राप्य कहां वो समझे ,प्रेम पिपासा में अब पड़के
पाने को जल ,मरुथल में ,जब जब दीवाना मृग दौड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
बहुत सुंदर रचना
जन्माष्टमी की शुभकामनायें
्दीवानगी की भाषा कोई दीवाना ही समझ सकता है
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंजिस मदरसे में ढाई आखर प्रेम के मिलते हों उसमें जीवन भर भी पढ़ना पड़े तो कम है ... दीवानों से पूछो वो बतायंगे इसके नशे में क्या है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना,,,,अंजनी कुमार जी ,,,
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
प्रिय अंजनी जी बहुत सुन्दर काविले तारीफ़ रचना ...जय हिंद ....
जवाब देंहटाएंआभार
भ्रमर 5
डूबूं इस रस में कि बन्द हो ,रोज रोज का आना जाना
जवाब देंहटाएंपाने को पूर्णता प्रेम की , आतुर एक भ्रमर दीवाना
बन्द पंखुड़ी में होने को, जब नलिनी की ओर मुड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
....बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...हरेक पंक्ति दिल को छू जाती..शब्दों और भावों का बहुत सुन्दर संयोजन...बधाई
आपके दीवानेपन के तो कायल हो गए हम
जवाब देंहटाएंएक रंग दे रहा दुहाई ,रंगों के इस विपुल झुण्ड में
जवाब देंहटाएंनीरस उसे लगे जीवन ,पाखण्डी पण्डित के त्रिपुण्ड में
.....bahut khoob...
दीवाने के नयन तपस्वी ,थके ना कभी प्रतीक्षा करके
जवाब देंहटाएंप्राप्य अप्राप्य कहां वो समझे ,प्रेम पिपासा में अब पड़के
पाने को जल ,मरुथल में ,जब जब दीवाना मृग दौड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
vah kya lajabab likha hai apne .....bahut hi sundar rachana ...sadar badhai.
एक रंग दे रहा दुहाई ,रंगों के इस विपुल झुण्ड में
जवाब देंहटाएंनीरस उसे लगे जीवन ,पाखण्डी पण्डित के त्रिपुण्ड में
मगर मांग में दीवानी की, बनकर जब सिन्दूर पड़ा है
तभी मदरसे में हमने ,दीवानेपन का सबक पढ़ा है
आपकी इस लंबी छंदबद्ध रचना में काव्य के सारे साहित्यिक गुण समाहित हैं।
क्या खूब लिखा है आपने, बधाई !
बड़ी प्यारी रचना ...
जवाब देंहटाएंआपकी कलम प्रभावित करने में कामयाब है ! बधाई !
आपकी कविता ने तो पुराने कवियों की याद दिला दी... खत्म हो रहे उस माधुर्य की झलक फिर से देखने को मिली। बहुत सुंदर गीत है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन, सादर.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें.
विजय दशमी की शुभ कामनाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही ...सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मन को किस तरह छेड़ गयी ये कविता पता ही नहीं चला ।
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